शहीद भगत सिंह जीवनी | Bhagat Singh Biography In Hindi

Bhagat Singh Biography In Hindi

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Bhagat Singh Biography In Hindi: भारत के स्वतंत्रता के पीछे बहुत से महान सेनानियों का हाथ है, जिसमें से एक है महान शहीद भगत सिंह। शहीद भगत सिंह भारत के सबसे महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में जाने जाते हैं। इन्होंने अपने भारत देश कि आजादी की लड़ाई लड़ते हुए केवल 23 साल की उम्र में ही अपने प्राण न्योछावर कर दिए।

बचपन से हि इनके मन में अंग्रेजों के प्रति काफी नफरत भरा हुआ था, क्योंकि इन्होंने अपने आस पास अंग्रेजों द्वारा भारतीय नागरिकों पर अत्याचार होते हुए देखा था। और शहीद भगत सिंह के इसी नफरत ने इन्हें क्रांतिकारी बनाया था।

Bhagat Singh Biography In Hindi

इन्होंने अपने पूरे जीवन में अपने देश की आजादी के लिए काफी संघर्ष किया और उनका यही संघर्ष और बलिदान आज के समय में भारत के नौजवानों के लिए प्रोत्साहन और प्रेरणा का काम करता हैं। तो आइए About Bhagat Singh In Hindi के बारे में विस्तार से जानते हैं।

इस पोस्ट में क्या है?
  1. शहीद भगत सिंह जीवन परिचय (Bhagat Singh Biography In Hindi)
  2. भगत सिंह का जन्म, एवं आरंभिक जीवन
  3. Bhagat Singh Family
  4. शहीद-ए-आजम भगत सिंह के कारनामे
  5. शहीद-ए-आजम भगत सिंह स्वतंत्रता की लड़ाई
  6. शहीद भगत सिंह की फांसी
  7. निष्कर्ष:-
  8. FAQs:

शहीद भगत सिंह जीवन परिचय (Bhagat Singh Biography In Hindi)

भगत सिंह जीवनी (Bhagat Singh Biography In Hindi) की बात करें तो इनका पूरा नाम शहीद भगत सिंह है। इनका जन्म 28 सितंबर 1907 को बंगा गांव, जिला लायलपुर (पंजाब) में हुआ था जो कि अभी के समय में पाकिस्तान का एक हिस्सा है। शहीद भगत सिंह के पिता का नाम सरदार किशन सिंह सिन्धु और माता का नाम श्रीमती विद्यावती था। इनके कुल 8 भाई-बहन थे, जिनके नाम रणवीर, कुलतार, राजिंदर, कुलबीर, जगत, प्रकाश कौर, अमर कौर, शकुंतला कौर था। इसके अलावा इनके चाचा का नाम श्री अजित सिंह था, जोकि एक बहुत ही बड़े स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। इन्होंने अपने जीवन काल में भारत देश के नागरिकों को अंग्रेजों से मुक्त करने के लिए “भारतीय स्वतंत्रता संग्राम” आंदोलन किया था। इसके साथ ही साथ इनके प्रमुख संगठन नौजवान भारत सभा और हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसियेशन था।

भगत सिंह का जन्म, एवं आरंभिक जीवन

शहीद भगत सिंह जीवनी

शहीद भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1960 को बंगा गांव, जिला लायलपुर (पंजाब) में हुआ था। इनका जन्म एक सिख परिवार में हुआ था, और इनके जन्म के समय इनके पिता जेल में थे। भगत सिंह ने बचपन से ही अपने घर में अंग्रेजों के प्रति होने वाले अत्याचार को देखा है। भगत सिंह के अंदर बचपन से ही देशभक्ति की भावना देखने को मिलती थी। और भगत सिंह के पिता ने उनका एडमिशन दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल में कराया था। भगत सिंह जीवनी काफी रोचक है। भगत सिंह देशभक्त होने के साथ-साथ एक बहुत ही अच्छे एक्टर भी थे। इन्होंने अपने स्कूल और कॉलेज के समय से ही बहुत से नाटक में भाग लिया करते थे और इनके द्वारा किए जाने वाले नाटकों में भी देशभक्ति हि शामिल होती थी। भगत सिंह के इन नाटकों को करने के पीछे का उद्देश्य केवल नव युवकों को देश भक्ति के लिए प्रेरित करना था। भगत सिंह बचपन से ही निडर और मस्तमौले इंसान थे। इन्हें कभी भी अंग्रेजों से डर नहीं लगा था। वे हमेशा ही अपने नाटक के माध्यम से अंग्रेजों को नीचा दिखाया करते थे और उनका मजाक उड़ाया करते थे। भगत सिंह पढ़ाई में काफी अच्छे थे और उन्हें लेख लिखने का भी काफी शौक था। इन्होंने अपने कॉलेज के समय में काफी अच्छे-अच्छे निबंध और कविताएं लिखी थी, जिसके कारण इन्हें कई सारे पुरस्कार मिले थे।

Bhagat Singh Family

भगत सिंह एक सिख परिवार के रहने वाले थे। भगत सिंह ने बचपन से ही अपने घर और घरवालों के अंदर देशभक्ति की भावना देखी है। इनके जन्म के समय इनके पिता जेल में बंद थे। भगत सिंह के चाचा अजित सिंह भी एक बहुत बड़े स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। इन्होंने भी भारत देश में क्रांतिकारी लाने के लिए कई सारे काम किए थे। और इनके द्वारा हि “भारतीय देशभक्ति एसोसिएशन” का निर्माण किया गया था। सैयद हैदर रजा इस एसोसिएशन का हिस्सा थे, और इन्होंने भी अजीत सिंह का पूरा साथ दिया था। अजित सिंह के खिलाफ कुल 22 केस दर्ज थे, जिससे बचने के लिए उन्हें ईरान जाना पड़ा था। भगत सिंह का नाम शहीद-ए-आजम कैसे पड़ा शहीद-ए-आजम का अर्थ शहीद, देश या किसी नेक काम के लिए अपना जीवन बलिदान करने या देश के लिए अपनी जान न्योछावर करना होता है। शहीद भगत सिंह ने बड़ी कम उम्र में ही अपने देश के आजादी की लड़ाई लड़ते हुए अपना जान न्योछावर किया था, इसी कारण उन्हें शहीद-ए-आजम के नाम से जाना जाता है। सबसे पहले भगत सिंह को शहीद-ए-आजम का खिताब कानपुर ने दिया था। भगत सिंह को फांसी पर लटका देने के बाद कानपुर में छपने वाले ‘प्रताप’ और इलाहाबाद से छपने वाले ‘भविष्य’ जैसे अखबारों द्वारा सबसे पहले उनके नाम से पहले शहीद-ए-आजम लिखना शुरू किया था। दरअसल भगत सिंह कानपुर में छपने वाले अखबार ‘प्रताप’ के हिस्सा थे। वे फांसी में लटकने से पहले प्रताप अखबार के लिए ही काम किया करते थे। इनके द्वारा भगत सिंह को शहीद-ए-आजम नाम देने के बाद अभी के समय तक पूरी दुनिया भगत सिंह को शहीद-ए-आजम के नाम से जानती है।

शहीद-ए-आजम भगत सिंह के कारनामे

जैसा कि हमने आपको बताया कि भगत सिंह बचपन से ही एक बहुत बड़े देशभक्त थे। बचपन से ही इनके मन में क्रांतिकारी की भावना थी। जब भगत सिंह ने 1919 में हुए जलियांवाला बीग हत्याकांड को दिखा तब वे काफी दुखी हुए। और तभी से उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ अलग-अलग आंदोलन में शामिल होना शुरू किया। भगत सिंह ने महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन में शामिल होकर उसका पूरी तरह से समर्थन किया। और अंग्रेजो के खिलाफ निडर होकर गांधी जी द्वारा कहे गए सभी बातों को मानने लगे। परंतु कुछ हिंसात्मक गतिविधियों के कारण गांधीजी ने इस आंदोलन को बंद कर दिया लेकिन भगत सिंह इस फैसले के विरुद्ध है। और फिर इन्होंने गांधीजी के आंदोलन को छोड़कर किसी दूसरी पार्टी को ज्वाइन करने के बारे में सोचा। जब भगत सिंह BA की पढ़ाई कर रहे थे, तब वे सुखदेव थापर, भगवती चरन, और अन्य लोगों से मुलाकात की, जिनके मन में भी देशभक्ति समाई हुई थी। भगत सिंह ने अपनी BA (Bachelor of Arts) की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और बाकी लोगों के साथ मिलकर देश की आजादी की लड़ाई में शामिल हुए। भगत सिंह ने सुखदेव और भगवती चरण वोहरा जैसे बाकी लोगों के साथ मिलकर अंग्रेजों का काफी बहिष्कार किया और निडर होकर सामना किया।

शहीद-ए-आजम भगत सिंह स्वतंत्रता की लड़ाई

यदि Bhagat Singh History In Hindi की बात करें तो इनका इतिहास काफी साहस पूर्ण रहा है। भगत सिंह ने स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने के लिए काफी साहस पूर्ण कदम उठाए थे। वे सबसे पहले नौजवान भारत सभा में शामिल हुए। और फिर वे अपने घर लौटकर कीर्ति किसान पार्टी के मैगजीन के लिए काम करने लगे। भगत सिंह एक बहुत ही अच्छे लेखक थे और वे कीर्ति किसान पार्टी के मैगजीन के माध्यम से युवाओं को अपना संदेश पहुंचाते थे। शहीद-ए-आजम भगत सिंह 1926 में नौजवान भारत सभा के सेक्रेटरी बने, उसके बाद उन्होंने 1928 में एक मौलिक पार्टी ज्वाइन की जिसका नाम हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) था। और इस मौलिक पार्टी का निर्माण चन्द्रशेखर आजाद द्वारा किया गया था। इसी पार्टी द्वारा 30 अक्टूबर 1928 को “साइमन वापस जाओ” के नारे के साथ सइमन कमीशन का विरोध किया। इस आंदोलन के दौरान काफी मुश्किलों का सामना किया गया और इसके दौरान ही लाला लाजपत राय की भी मृत्यु हुई थी। लाला लाजपत राय की मृत्यु के बाद भगत सिंह और भी ज्यादा क्रोधित हुए थे, और उन्होंने अंग्रेजों से बदला लेने की ठानी। इस दौरान भगत सिंह ने एक असिस्टेंट पुलिस की भी हत्या की थी जिसके बाद इन्हें लाहौर छोड़कर भागना पड़ा परंतु ब्रिटिश पुलिस द्वारा उन्हें पकड़ लिया गया। भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुखदेव और राजदेव सब मिलकर अंग्रेजो के खिलाफ एक बड़ी साजिश की तैयारी कर रहे थे। उन्होंने इस बार यह फैसला लिया था कि वे अंग्रेजों का सामना करेंगे और कमजोर होकर नहीं भागेंगे। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने मिलकर दिसंबर 1929 को ब्रिटिश सरकार के असेंबली हॉल में बम ब्लास्ट किया, जिसे खाली जगह पर फेंका गया था और यह सिर्फ आवाज करने वाला था। इस घटना को अंजाम देते हुए उन्होंने इंकलाब जिंदाबाद के नारे भी लगाए थे उसके बाद उन्होंने अपने आप को गिरफ्तार भी करवाया था।

शहीद भगत सिंह की फांसी

बम ब्लास्ट की घटना को अंजाम देने के बाद भगत सिंह और बाकी साथियों ने अपने आप को गिरफ्तार करवाया था, जिसके कारण भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फाँसी की सज़ा और बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास दिया गया था। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु तीनों को एक साथ 23 मार्च 1931 को शाम 7:00 बजे फांसी दी गई थी। तीनों ने अपनी गलती स्वीकार करते हुए हँसते-हँसते फांसी की सजा स्वीकार की ओर देश के लिए अपना बलिदान दिया।

निष्कर्ष:-